नवग्रह मंत्र

नवग्रहों के मंत्र हिंदू धर्म में विभिन्न ग्रंथों में मिलते हैं और इनका जाप विभिन्न उपायों के साथ किया जाता है। ये मंत्र नवग्रहों की शांति और उनके प्रभाव को शांत करने में मदद करते हैं। निम्नलिखित मंत्र नवग्रहों की शक्तियों को संतुलित करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं

सूर्य मंत्र:

ॐ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः।
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च॥
हिरण्येन सविता रक्षेन देवो यति भुवनानि पश्यन्।
सूर्यमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

यह मंत्र सूर्य देवता की पूजा और आराधना के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र का जाप और सूर्य देवता की आराधना करने से उनके शुभ प्रभाव में सुधार होता है

इस मंत्र का अर्थ है:

सूर्य देव, जो स्वर्णिम रथ पर ऊषाकाल की रश्मियों के साथ उदय होते हैं, अंधकार युक्त अंतरिक्ष पथ में भ्रमण करते हैं और देवताओं और मनुष्यों के कार्यों को निरीक्षण करते हैं। वे सभी को देखते हैं और उनकी प्रकाशित करते हैं।

चन्द्र मंत्र:

ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः।
इमं देवा असपत्न ग्वं सुवध्वं महते क्षत्राय ,
महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रिस्येन्द्रियाय।
इममममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोमी राजा ,
सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ग्वं राजा।
चन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

यह मंत्र सोम (चंद्रमा) देवता की पूजा और आराधना के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र का जाप और सोम देवता की आराधना करने से उनके शुभ प्रभाव में सुधार होता है।

इस मंत्र का अर्थ है:
“ओं, ऐं, क्लीं, सोम देवता को नमस्कार। यह देवता असपत्न ग्रहण के लिए, महान क्षत्रिय के लिए, महान ज्येष्ठता के लिए, महान जानराज्य के लिए, इन्द्रियों के स्वामी के रूप में है। यह राजा हमारे पुत्रों के पिता है, इस पुत्र को इस पुत्रार्थी के रूप में आप जानते हैं, चंद्रमा आपको आमंत्रित करता हूं, आपको स्थापित करता हूं, आपकी पूजा करता हूं और आपको नमस्कार करता हूं।”

मंगल मंत्र:

ॐ हूं श्रीं भौमाय नमः।
अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्।
अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति,
मंगलमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

यह मंत्र भगवान मंगल (मंगल ग्रह) की पूजा और आराधना के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र का जाप और मंगल देवता की आराधना करने से उनके शुभ प्रभाव में सुधार होता है।

इस मंत्र का अर्थ है:
“ॐ, हूं, श्रीं, मंगल देवता को नमस्कार। अग्नि इस सृष्टि का शिर है, दिव्य लोक का निर्माता है, पृथ्वी का आधार है। वह पानी की धारा है, यहाँ पानी बहता है, यहाँ अश्विनी जिन्वति है। मंगल को मंगल के रूप में आमंत्रित करता हूं, स्थापित करता हूं, पूजा करता हूं, और नमस्कार करता हूं।”

यह मंत्र मंगल के प्रभाव को प्राप्त करने और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए उपयोगी होता है।

बुध मंत्र:

ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः।
उद्बुध्यास्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामायं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत,
बुधमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

यह मंत्र बुध ग्रह की शक्ति को स्तुति करता है और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए उपयोगी है। इस मंत्र का जाप करने से बुध ग्रह के प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।

इस मंत्र का अर्थ है:

हे अग्नि रूप में बुधदेव! आप उत्तम रूप से प्रज्वलित हों और चेतना को प्राप्त करें। आप उस यजमान की सत् आकांक्षाओं को पूर्ण करें, जो अभीष्ट प्राप्त करना चाहता है। सभी देवताओं और यजमान साथ में इस लोक और स्वर्ग लोक में चिरकाल तक अधिष्ठित रहें।

गुरु मंत्र:

ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये नमः।
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्,
गुरुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

यह मंत्र बृहस्पति (गुरु ग्रह) को समर्पित है और उनकी पूजा और आराधना के लिए उपयोगी मानी जाती है। इस मंत्र का जाप करने से बृहस्पति ग्रह के प्रभाव में सुधार हो सकता है।

इस मंत्र का अर्थ है:

हे बृहस्पति! पूजनीय! आप अपनी जिस शक्ति से सभी लोगों में आदित्य के समान तेजस्वी और सक्रिय होकर अधिक प्रकाशित होते हैं। उसी अपनी शक्ति से प्रकाशित होकर, सत्य से भली भाँति उत्पन्न हे बृहस्पति देव! आप, हम सब मनुष्यों में आश्चर्यजनक धन धारण कीजिये अर्थात् प्रदान कीजिये।”

इस श्लोक में बृहस्पति ग्रह को सभी लोगों के तेजस्वी और प्रकाशमान होने की शक्ति के रूप में स्तुति की गई है। इसके अलावा, वे धन और समृद्धि के स्रोत के रूप में भी माने जाते हैं। इस श्लोक का उपयोग उनकी पूजा और स्तुति के लिए किया जाता है ताकि उनसे धन, समृद्धि और प्रकाश की कृपा प्राप्त हो सके।

शुक्र मंत्र:

ॐ हरिंग श्रृंग शुक्राय नमः।
अन्नात्परिसुतो रसं ब्रह्मणा,
व्यपिवत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः,
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ग्वं,
शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोमृतं मधु।
शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

शुक्र मंत्र हिंदू धर्म में शुक्र ग्रह (वीनस) की शक्ति को प्राप्त करने के लिए उपयोगी होते हैं। शुक्र मंत्र का जाप करने से शुक्र ग्रह के प्रभाव में सुधार होता है और व्यक्ति को सौंदर्य, समृद्धि, सुख, और संतान की प्राप्ति में मदद मिलती है। ये मंत्र उन्हें समर्पित किए जाते हैं और उनकी पूजा और आराधना के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

इस मंत्र का अर्थ है:

हे शुक्रदेव! जो वेदों के ज्ञाता ब्राह्मणों के संग स्थित हैं, प्रजापति ने पूर्ण रूप से पके हुए अन्न के रस से, सोम रस के समान, क्षात्र बल को धारण करने वाले, दूध का पान किया। यह सत्य सोम रूपी अन्न रस इंद्रियों की रक्षा के हेतु है। वह सभी दोषों का निवारण करते हैं और इंद्रियों को सामर्थ्य देते हैं। उनका प्रभाव ऐश्वर्य युक्त पुरुषों को बल प्रदान करता है और दुग्ध और अन्य मधुर पदार्थों को पीने से अमृतोपम आनंद प्राप्त होता है।

शनि मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः।
शं नो देवीरभिष्ठय आपो भवन्तु प्रीतये।
क्षं योरभिस्रवन्तु नः
शनिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

यह मंत्र शनि ग्रह (शनैश्चर) को समर्पित है और उनकी पूजा और आराधना के लिए उपयोगी है। इस मंत्र का जाप करने से शनि ग्रह के प्रभाव में सुधार हो सकता है।

इस मंत्र का अर्थ है:

हे शनिदेव! हमें अभीष्ट फल प्रदान करने के लिए और हमें पूर्णत: संतुष्ट करने के लिए, आपका दिव्य और उत्तम गुणों से युक्त जल हमारे लिए कल्याणकारी हो। आपका जल हमें सभी प्रकार की सुख, स्वास्थ्य, और समृद्धि प्रदान करने में सहायक हो। यह हमें रोगों का निवारण करने और अनिष्टों को दूर करने में मदद कीजिये और हमें सुख की वृद्धि के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कीजिये।

राहु मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं राहवे नम।
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा।
कया शचिष्ठ्या वृता,
राहुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि नमस्करोमि॥

यह मंत्र राहु ग्रह को समर्पित है और उनकी पूजा और आराधना के लिए उपयोगी है। इस मंत्र का जाप करने से राहु ग्रह के प्रभाव में सुधार हो सकता है।

इस मंत्र का अर्थ है:

हे राहुदेव! आप सदा वृद्धि करने वाले हैं, किसी अद्भुत शक्ति से हमारी रक्षा करते हैं और हमारे मित्र बन जाते हैं। कृपया किसी अत्यन्त उत्तम कार्य में हमारी सहायता करें।

केतु मंत्र:

ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः।
केतुं कृण्वन्त्रकेतवे पेशो मर्या अपेशसे,
समुषद्भिरजायथाः।
केतुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, नमस्करोमि॥

इस मंत्र का अर्थ है:

हे केतु ग्रह! मैं आपको नमस्कार करता हूं। आप को मृगों के समान बना देते हैं और विघ्नों को दूर करते हैं। केतु ग्रह को मैं आवाहन, स्थापना, पूजन और नमस्कार करता हूं।

ये मंत्र नवग्रहों के अनुकूल दिखाए जाते हैं और उनके प्रभाव को संतुलित करने के लिए उपयोगी माने जाते हैं। इन्हें नियमित रूप से जाप करने से नवग्रहों के प्रभाव में सुधार हो सकता है। इसके अलावा, नवग्रहों के दान और पूजा भी उनके शांति और शुभ प्रभाव में मदद कर सकती है।

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